यमुना नदी में गोपियाँ नहा रही थी। उनके सभी वस्त्र नदी किनारे पड़े हुए थे।
श्री कृष्ण जोकि जन्म से ही शरारती थे चुपके से आये और उन गोपियों के वस्त्र उठकर वृक्ष पर चढ़ गए। अपने वस्त्रों का इस प्रकार हरण होते देख गोपियाँ घबराई और कृष्ण से अनुनय-विनय करने लगी कि " हे कृष्ण! हे गोपाल! हमारे वस्त्र दे दो , हम बिना वस्त्रों के अपने घरों तक किस प्रकार पहुंचेंगी ?"
इस तरह कई प्रकार से निवेदन करने के पश्चात भी कृष्ण का ह्रदय न पिघला और वह शनै-२ मुस्कुराते रहे और गोपियों को परेशान देख कर आनंदित होते रहे।
गोपियाँ अपने अंगों को जल में छिपाकर कृष्णा से विनय करती रही। जब बहुत देर हो गई तो कृष्ण ने उन सबके सम्मुख एक शर्त रखी कि उन्हें बाहर आकर अपने वस्त्र लेने होंगे।
मरती क्या न करती ? गोपियों ने कृष्ण के सम्मुख नग्नावस्था में ही बाहर निकलने में ही अपनी भलाई समझी। गोपियाँ थोड़ी बाहर आई तो उनके वक्षस्थल थोड़े से दिखने लगे *********************
इस से आगे की कथा आप केवल अपने मन में सोचिये, मैं थोड़ी देर बाद सुनाता हूँ। क्योंकि मैं सोच रहा हूँ कि क्या यह संभव है क कृष्ण ऐसा करेंगे? वृन्दावन में जो स्त्रियां नहाने गई थी वह सभी आयु की सम्मिलित महिलाएं होंगी ! सभी बच्चियां तो होंगी नहीं जबकि कृष्ण की आयु उस समय तो बहुत छोटी थी. किशोरावस्था में ही तो कृष्ण मथुरा चले गए थे। फिर वह तो अन्तर्यामी श्री विष्णु जी के अवतार थे तो उन्हें स्त्री शरीर की लालसा होगी?
इन प्रश्नो के उत्तर आप सोचिये।
यह कथा मैंने १०, ११ या १२ वर्ष की आयु में सुनी थी जब मैं अपनी दादी के साथ कहीं प्रवचन सुनने गया था और मेरे मनोमस्तिष्क पर छा गई थी। और बाल मस्तिष्क में ऐसी कहानियां छा जाना कठिन नहीं था. और इस बीच कई बार जब किसी एक लड़के को कई लड़कियों के साथ देखा जाता था तो गोपियों के बीच कन्हैया कह कर पुकारे जाते सुना था। इसका परिणाम क्या निकला? अपनी युवावस्था में जब मैं अपनी एक पड़ोसिन लड़की के साथ छत पर पकड़ा गया तो पिताजी कान उमेंठते हुए घर पर लेकर आये और पिटाई करने वाले थी तो मैंने कहा,
" गलत क्या किया था मैंने? हमारे भगवान भी तो यही करते थे?" मस्तिष्क में वही कृष्ण की लील! जिनमे कई बार सुनी रास-लीला भी थी, गूँज रही थी। पिताजी के हाथ में बेल्ट वहीँ का वहीँ रह गया और वह बात की गहराई को समझ गए थे।
तब उन्होंने शांति से बैठकर मुझे समझाया और वह प्रश्न पूछे जो मैंने आपसे पूछे हैं और बताया जो मैंने आपको ऊपर बताया है. साथ ही बताया कि यह पंडित और प्रवचन-करता केवल वही सुनाते हैं जो आप सुनना चाहते हैं और इन्हे केवल भीड़ बढ़ाने से और अपना भला करने से मतलब है , धर्म किस खड्डे में जा रहा है, संस्कृति का कितना पतन हो रहा है इस से इनको कोई सारोकार नहीं है।
मेरा यह लिखने से आज इतना ही तात्पर्य था कि हे पंडितों !
हे प्रवचन कर्ताओं !
अपने कर्त्तव्य को समझो।
आज समाज को आवश्यकता है श्री कृष्ण के सही सन्दर्भों की। unhe सही प्रकार से भक्तों के सम्मुख प्रस्तुत करें जिस से उनमे भिन्न-२ प्रकार की भ्रांतियां उत्पन्न न हों। उनमे वीरता, सहिष्णुता और कर्तव्य-परायणता के भावनाएं जन्म लें।
यदि किसीको मेरी बात बुरी लगी हो, लिखने का तरीका पसंद न आया हो तो क्षमा चाहता हूँ। पर क्या करूँ? ऐसा ही हूँ मैं।
एक बार फिर श्री कृष्णा जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
जय श्री कृष्णा।
Nivedak - Anil Arora (Germany)
श्री कृष्ण जोकि जन्म से ही शरारती थे चुपके से आये और उन गोपियों के वस्त्र उठकर वृक्ष पर चढ़ गए। अपने वस्त्रों का इस प्रकार हरण होते देख गोपियाँ घबराई और कृष्ण से अनुनय-विनय करने लगी कि " हे कृष्ण! हे गोपाल! हमारे वस्त्र दे दो , हम बिना वस्त्रों के अपने घरों तक किस प्रकार पहुंचेंगी ?"
इस तरह कई प्रकार से निवेदन करने के पश्चात भी कृष्ण का ह्रदय न पिघला और वह शनै-२ मुस्कुराते रहे और गोपियों को परेशान देख कर आनंदित होते रहे।
गोपियाँ अपने अंगों को जल में छिपाकर कृष्णा से विनय करती रही। जब बहुत देर हो गई तो कृष्ण ने उन सबके सम्मुख एक शर्त रखी कि उन्हें बाहर आकर अपने वस्त्र लेने होंगे।
मरती क्या न करती ? गोपियों ने कृष्ण के सम्मुख नग्नावस्था में ही बाहर निकलने में ही अपनी भलाई समझी। गोपियाँ थोड़ी बाहर आई तो उनके वक्षस्थल थोड़े से दिखने लगे *********************
इस से आगे की कथा आप केवल अपने मन में सोचिये, मैं थोड़ी देर बाद सुनाता हूँ। क्योंकि मैं सोच रहा हूँ कि क्या यह संभव है क कृष्ण ऐसा करेंगे? वृन्दावन में जो स्त्रियां नहाने गई थी वह सभी आयु की सम्मिलित महिलाएं होंगी ! सभी बच्चियां तो होंगी नहीं जबकि कृष्ण की आयु उस समय तो बहुत छोटी थी. किशोरावस्था में ही तो कृष्ण मथुरा चले गए थे। फिर वह तो अन्तर्यामी श्री विष्णु जी के अवतार थे तो उन्हें स्त्री शरीर की लालसा होगी?
इन प्रश्नो के उत्तर आप सोचिये।
यह कथा मैंने १०, ११ या १२ वर्ष की आयु में सुनी थी जब मैं अपनी दादी के साथ कहीं प्रवचन सुनने गया था और मेरे मनोमस्तिष्क पर छा गई थी। और बाल मस्तिष्क में ऐसी कहानियां छा जाना कठिन नहीं था. और इस बीच कई बार जब किसी एक लड़के को कई लड़कियों के साथ देखा जाता था तो गोपियों के बीच कन्हैया कह कर पुकारे जाते सुना था। इसका परिणाम क्या निकला? अपनी युवावस्था में जब मैं अपनी एक पड़ोसिन लड़की के साथ छत पर पकड़ा गया तो पिताजी कान उमेंठते हुए घर पर लेकर आये और पिटाई करने वाले थी तो मैंने कहा,
" गलत क्या किया था मैंने? हमारे भगवान भी तो यही करते थे?" मस्तिष्क में वही कृष्ण की लील! जिनमे कई बार सुनी रास-लीला भी थी, गूँज रही थी। पिताजी के हाथ में बेल्ट वहीँ का वहीँ रह गया और वह बात की गहराई को समझ गए थे।
तब उन्होंने शांति से बैठकर मुझे समझाया और वह प्रश्न पूछे जो मैंने आपसे पूछे हैं और बताया जो मैंने आपको ऊपर बताया है. साथ ही बताया कि यह पंडित और प्रवचन-करता केवल वही सुनाते हैं जो आप सुनना चाहते हैं और इन्हे केवल भीड़ बढ़ाने से और अपना भला करने से मतलब है , धर्म किस खड्डे में जा रहा है, संस्कृति का कितना पतन हो रहा है इस से इनको कोई सारोकार नहीं है।
मेरा यह लिखने से आज इतना ही तात्पर्य था कि हे पंडितों !
हे प्रवचन कर्ताओं !
अपने कर्त्तव्य को समझो।
आज समाज को आवश्यकता है श्री कृष्ण के सही सन्दर्भों की। unhe सही प्रकार से भक्तों के सम्मुख प्रस्तुत करें जिस से उनमे भिन्न-२ प्रकार की भ्रांतियां उत्पन्न न हों। उनमे वीरता, सहिष्णुता और कर्तव्य-परायणता के भावनाएं जन्म लें।
यदि किसीको मेरी बात बुरी लगी हो, लिखने का तरीका पसंद न आया हो तो क्षमा चाहता हूँ। पर क्या करूँ? ऐसा ही हूँ मैं।
एक बार फिर श्री कृष्णा जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
जय श्री कृष्णा।
Nivedak - Anil Arora (Germany)
2 comments:
ये सब होने के कारण है एक भडवा पैदा हुवा था जिसे लोग राष्टपिता कहते है ,,अंगुली कमजोर पर उठाई जाती है ,,हिन्दुओं को कमजोर करने में हिन्दुओं के संगठन का हाथ है ,,कहते है की हिटलर से लोग नजर नहीं मिला पाते थे ,,अत : अपनी बात को कहने से डरना नहीं चाहिए ,,जय हिन्द
भगवान श्रीहरिकृष्ण ने यमुना किनारे स्नान कर रही स्त्रियों को जल देवता का महत्व बताने के लिए ओर किसी भी नदी सरोवर ओर जलाशय में नग्न अवस्था मे स्नान ना करने की बात को समझाने के लिए उनके वस्त्र छुपा दिए नाकि किसी शारीरिक वासना के अधिभूत होकर ऐसा कृत्य किया
आपने कथा भागवत कई बार सुनी लेकिन ओर ध्यान और श्रद्धा से नही सुनी नही तो आपको भी पूरे वृतांत कहानी के बारे जानकारी होती अतः आगे से धर्मक्षेत्र में जाये तो अपना ध्यान एकाग्र रखे ।।
जय श्रीकृष्ण
जय श्रीराम
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